धारा 44 यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के खतरे वाले हमले से अपनी रक्षा कर रहा है, और वह उस रक्षा को प्रभावी ढंग से नहीं कर सकता बिना किसी निर्दोष व्यक्ति को जोखिम में डाले, तो उसका निजी रक्षा का अधिकार तब भी बना रहता है - यदि निर्दोष को हानि पहुँच जाए तो भी यह अपराध नहीं होगा, जब तक वह हानि जानबूझकर न की गई हो।
उदाहरण:
- A पर भीड़ द्वारा हमला किया जाता है, जिसका उद्देश्य उसकी हत्या करना है। उस भीड़ में कुछ बच्चे भी शामिल हैं। A यदि भीड़ पर गोली चलाए बिना खुद को नहीं बचा सकता, और गोली चलाने से बच्चों को भी चोट लगने का खतरा है, तब भी A यदि गोली चलाता है और किसी बच्चे को हानि होती है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा, क्योंकि:
- कार्य सद्भावपूर्वक आत्मरक्षा में किया गया।
- हानि अनजाने में और अनिवार्य रूप से हुई।
- इरादा केवल अपनी रक्षा का था, न कि निर्दोष को हानि पहुँचाने का।
यह कैसे सुरक्षा देता है:
- वास्तविक और गंभीर खतरे की स्थिति में व्यक्ति को पूरा आत्मरक्षा का अधिकार देता है।
- जब निर्दोष व्यक्ति को हानि अनजाने में होती है, तो यह व्यक्ति को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह कानून मानव व्यवहार की सीमाओं को समझता है, विशेष रूप से तनावपूर्ण और घातक परिस्थितियों में।