धारा 45 यह निर्धारित करती है कि किसी अपराध को प्रेरित करने, योजना बनाने या उसमें सहायता करने वाला व्यक्ति भी अपराध का दोषी होता है,
भले ही उसने स्वयं अपराध को अंजाम न दिया हो। यह धारा अप्रत्यक्ष रूप से अपराध में शामिल लोगों को भी उत्तरदायी ठहराती है।
मुख्य बिंदु:
एक व्यक्ति तब अभिप्रेरक (abetter) माना जाता है जब वह:
(क) किसी अन्य व्यक्ति को उस कार्य को करने के लिए उकसाता है।
(ख) एक या अधिक व्यक्तियों के साथ उस कार्य को करने के लिए षड्यंत्र करता है, और उसके परिणामस्वरूप कोई कार्य या गैरकानूनी चूक होती है।
(ग) जानबूझकर, किसी कर्म या गैरकानूनी चूक द्वारा, उस कार्य को करने में सहायता करता है।
व्याख्या 1:
यदि कोई व्यक्ति किसी आवश्यक तथ्य को जानबूझकर छुपाता है या झूठी जानकारी देता है,
और इसके कारण कार्य किया जाता है, तो वह उकसाने के समान माना जाता है।
उदाहरण:
A, एक सरकारी अधिकारी, Z को पकड़ने के लिए अधिकृत है।
B, यह जानते हुए कि C, Z नहीं है, फिर भी A से कहता है कि C ही Z है, जिससे C की गिरफ्तारी हो जाती है।
यह उकसावे द्वारा अभिप्रेरण (instigation) है।
व्याख्या 2:
अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध से पहले या उसके समय पर ऐसा कुछ करता है जिससे अपराध करना आसान हो जाए,
तो उसे उस कार्य को सहायता प्रदान करना (aid) माना जाता है।
यह कैसे सुरक्षा देता है:
- अपराध के पीछे के लोगों को कानूनी जवाबदेही में लाता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि उकसाने, योजना बनाने या सहायता करने वाले लोग दंड से न बचें।
- प्रेरणा, षड्यंत्र और सहायता की अवधारणाओं को स्पष्ट करता है।
उदाहरण:
- उकसाना: किसी को झूठ बोलने या चोरी करने के लिए उकसाना — आप अपराध के अभिप्रेरक हैं।
- षड्यंत्र: किसी चोरी की योजना बनाना और बाहर निगरानी करना — आप दोषी हैं।
- सहायता: अपराध में इस्तेमाल होने वाले औज़ार देना या जानबूझकर चुप रहना — यह भी अपराध में सहायता है।