धारा 46: कौन होता है अपराध का अभिप्रेरक

धारा 46 यह परिभाषित करती है कि कौन व्यक्ति “अभिप्रेरक (abettor)” कहलाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को करने के लिए उकसाता है, षड्यंत्र करता है, या जानबूझकर सहायता करता है, तो वह अभिप्रेरक माना जाता है — भले ही अपराध हुआ हो या नहीं, या जिसे उकसाया गया हो वह कानूनी रूप से अपराध करने में सक्षम न हो।

मुख्य बिंदु:

  • व्यक्ति अभिप्रेरक तब माना जाता है जब वह:
    • किसी को अपराध करने के लिए उकसाता है
    • अपराध के लिए षड्यंत्र करता है, और उसके तहत कोई कार्य या चूक होती है।
    • किसी अपराध को करने में जानबूझकर सहायता करता है
  • व्याख्या 1: यदि कोई कार्य गैरकानूनी रूप से नहीं किया गया और व्यक्ति उसे करने के लिए बाध्य नहीं है, फिर भी अगर वह उसे उकसाता है, तो वह अभिप्रेरक माना जाएगा।
  • व्याख्या 2: अभिप्रेरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराध हुआ हो
  • व्याख्या 3: जिसे उकसाया गया है, उसका कानूनी रूप से सक्षम होना आवश्यक नहीं है, दोष अभिप्रेरक पर होता है
  • व्याख्या 4: अभिप्रेरण का अभिप्रेरण भी अपराध है।
  • व्याख्या 5: यदि षड्यंत्र के दौरान व्यक्ति सीधे अपराधी से नहीं जुड़ा हो, तब भी अगर वह योजना में शामिल है, तो वह भी दोषी है

यह कैसे सुरक्षा देता है:

  • यह सुनिश्चित करता है कि पीछे से अपराध को बढ़ावा देने वाले लोग भी दंडनीय हों
  • यह बच्चों, मानसिक रूप से अक्षम लोगों या भोले व्यक्तियों का दुरुपयोग करने से रोकता है
  • षड्यंत्र और अप्रत्यक्ष साझेदारी को भी अपराध मानकर दंडित करता है।
  • अपराध के लिए मानसिक मंशा और सहायता को ध्यान में रखता है, न कि केवल कार्य को।

उदाहरण:

  • A, B से कहता है कि वह C की हत्या करे — B नहीं करता — A फिर भी अभिप्रेरक है।
  • A, B को D की हत्या करने के लिए उकसाता है — B हमला करता है, D बच जाता है — A हत्या के लिए अभिप्रेरक है।
  • A, 6 साल के बच्चे को ज़हर देने के लिए कहता है — बच्चा किसी को मार देता है — A हत्या के लिए दोषी है।
  • A और B मिलकर ज़हर की योजना बनाते हैं, C को शामिल करते हैं — C, A से कभी नहीं मिला — फिर भी C षड्यंत्र के लिए दोषी है।