भारतीय न्याय संहिता की धारा 152: भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा

भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 उन कार्यों से संबंधित है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालते हैं। यह धारा जानबूझकर या जानने के बावजूद अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, उपद्रवी गतिविधियों को भड़काने या ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले शब्दों, संकेतों, दृश्य प्रतिनिधित्व, इलेक्ट्रॉनिक संचार, वित्तीय साधनों या किसी अन्य माध्यम का उपयोग करने को अपराध मानती है।

इस धारा के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास या सात साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार की नीतियों या कार्यों की आलोचना, यदि वह कानूनी तरीके से बदलाव लाने के उद्देश्य से की गई हो और विद्रोह या अलगाववाद को भड़काने का प्रयास न हो, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा। यह प्रावधान राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के साथ-साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाता है।

यह कैसे सुरक्षा प्रदान करता है:
यह धारा भारत की संप्रभुता और एकता के लिए खतरों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कानूनी सुधारों के लिए असहमति और आलोचना की स्वतंत्रता बनी रहे, लेकिन विद्रोह या अलगाववादी गतिविधियों को सख्ती से दंडित किया जाए।