भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से मौखिक, लिखित, दृश्य, या प्रतीकात्मक रूप से झूठे आरोप लगाता है, प्रकाशित करता है, या प्रचारित करता है।
यदि बयान झूठा है और इसे बदनाम करने के इरादे से किया गया है, तो यह मानहानि मानी जाएगी।
सजा:
जो कोई मानहानि करता है, उसे दो साल तक की साधारण कैद, या जुर्माने, या दोनों, या सामुदायिक सेवा की सजा हो सकती है।
यदि कोई व्यक्ति झूठी मानहानि संबंधी सामग्री प्रिंट करता, उत्कीर्ण करता, या वितरित करता है, तो उसे दो साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा होगी।
जो कोई झूठी मानहानि संबंधी सामग्री बेचता या बिक्री के लिए पेश करता है, उसे दो साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा मिलेगी।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है:
यह धारा झूठे और हानिकारक बयानों को रोकने में मदद करती है, जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
यह सुनिश्चित करती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके किसी की छवि खराब न की जाए।
साथ ही, यह सार्वजनिक हित, निष्पक्ष आलोचना, और सत्यता पर आधारित रिपोर्टिंग को अपवादों में शामिल करती है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति समाचार पत्र या सोशल मीडिया पर किसी को भ्रष्टाचार का झूठा आरोप लगाकर बदनाम करता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी होगा।
इसी तरह, यदि कोई व्यापारी प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए झूठी अफवाहें फैलाता है, तो उसे इस कानून के तहत सजा मिल सकती है।