धारा 196: घृणास्पद भाषण और सामाजिक सौहार्द्र के विरुद्ध कार्यों को रोकना

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, या समुदाय के आधार पर घृणा, शत्रुता, या वैमनस्य फैलाने के लिए भाषण, लेखन, संकेत, इलेक्ट्रॉनिक संचार, या अन्य साधनों का उपयोग करता है।

यह सार्वजनिक शांति और सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

इस धारा के तहत अपराध:
भाषण, लेखन, संकेत, या इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, या समुदाय के आधार पर दुश्मनी या नफरत फैलाना।

ऐसे कार्य करना जो सामुदायिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाते हैं और सार्वजनिक शांति को बाधित करते हैं।

हिंसा के लिए प्रशिक्षण आयोजित करना या उसमें भाग लेना, यह जानते हुए कि यह किसी धार्मिक, जातीय, भाषाई, या क्षेत्रीय समूह के खिलाफ भय, असुरक्षा, या हिंसा उत्पन्न कर सकता है।

सजा:
जो कोई इस अपराध को करता है, उसे तीन साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

यदि यह अपराध किसी पूजा स्थल या धार्मिक सभा में किया जाता है, तो सजा पांच साल तक की कैद और जुर्माने तक बढ़ सकती है।

यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है:
यह धारा सामाजिक शांति और सद्भाव बनाए रखने में मदद करती है और सांप्रदायिक नफरत, हिंसा, और विभाजनकारी गतिविधियों को रोकती है।

यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति धार्मिक, जातीय, या भाषाई आधार पर वैमनस्य न फैलाए।

उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति किसी समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए भाषण देता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी होगा।

इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष समूह के खिलाफ हिंसा के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है, तो उसे दंडित किया जाएगा।