धारा 120: जबरन स्वीकारोक्ति और संपत्ति की वसूली के लिए यातना पर रोक

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 120 तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को इस उद्देश्य से चोट पहुँचाता है कि वह अपराध स्वीकार करे, किसी अपराध से संबंधित जानकारी दे, या किसी संपत्ति, मूल्यवान वस्तु, या भुगतान को बहाल करने के लिए मजबूर किया जाए।

यह धारा सुनिश्चित करती है कि शारीरिक यातना या हिंसा को जानकारी प्राप्त करने, जबरन स्वीकारोक्ति लेने, या संपत्ति की वसूली के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

सजा:
जो कोई जानबूझकर किसी को चोट पहुँचाता है, उसे सात साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

जो कोई जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाता है, उसे दस साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

उदाहरण:
यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध को जबरन अपराध स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित करता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी होगा।

यदि कोई सरकारी अधिकारी किसी व्यक्ति को राजस्व कर वसूली के लिए यातना देता है, तो उसे सजा दी जाएगी।

यदि कोई व्यक्ति किसी को पीटकर चोरी की गई संपत्ति का स्थान बताने के लिए मजबूर करता है, तो यह अपराध माना जाएगा।

यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है:
यह धारा स्वीकारोक्ति या संपत्ति की वसूली के लिए हिंसा और यातना के उपयोग को रोकती है।

यह सुनिश्चित करती है कि जांच और वसूली वैध तरीकों से की जाए, और मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो।

उदाहरण:
यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध को पीटकर जबरन अपराध स्वीकार करवाने की कोशिश करता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी होगा।

इसी तरह, यदि कोई कर्ज वसूली एजेंट बल प्रयोग कर उधारकर्ता से पैसे लेने की कोशिश करता है, तो यह अपराध होगा।

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