भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 16 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायालय के आदेश या निर्णय का पालन करते हुए कोई कार्य करता है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही उस न्यायालय को वह आदेश पारित करने का अधिकार न रहा हो, बशर्ते कि वह व्यक्ति सद्भावना से यह माने कि न्यायालय के पास अधिकार था।
मुख्य प्रावधान:
न्यायालय के आदेशों के तहत किए गए कार्य अपराध नहीं होंगे
यदि कोई व्यक्ति न्यायालय के निर्णय या आदेश का पालन करता है, तो वह आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं होगा।
अधिकार क्षेत्र न होने पर भी सुरक्षा
यदि न्यायालय को वह आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था, लेकिन आदेश का पालन करने वाला व्यक्ति सद्भावना से यह मानता था कि आदेश वैध था, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है?
न्यायालय के आदेशों का पालन करने वालों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
पुलिस अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों को अनुचित आपराधिक मुकदमों से बचाती है।
सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति सद्भावना से कार्य करते हुए गलत तरीके से दंडित न हो।
उदाहरण:
यदि एक पुलिस अधिकारी न्यायालय के आदेश पर किसी को गिरफ्तार करता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि न्यायालय के पास वह आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था, तो अधिकारी पर कोई अपराध नहीं बनेगा।
यदि सरकारी अधिकारी किसी न्यायिक आदेश के आधार पर किसी संपत्ति को जब्त करता है, और बाद में वह आदेश अवैध घोषित हो जाता है, तो अधिकारी पर गलत तरीके से संपत्ति छीनने का आरोप नहीं लगेगा।