धारा 30 bns: आपातकालीन स्थिति में बिना सहमति के भलाई के लिए कार्य करने का अधिकार

धारा 30 उस व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से छूट देती है जो किसी व्यक्ति के हित में, सद्भावपूर्वक कोई कार्य करता है, भले ही उस व्यक्ति की सहमति नहीं ली गई हो, यदि वह व्यक्ति सहमति देने में असमर्थ हो और समय पर किसी अभिभावक से सहमति लेना संभव न हो।

मुख्य बिंदु:

सहमति के बिना किया गया कार्य भी अपराध नहीं होगा

यदि किसी व्यक्ति की सहमति लेना संभव नहीं है और कार्य उसके लाभ के लिए सद्भावपूर्वक किया गया हो, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।

किन मामलों में यह छूट नहीं मिलेगी:

जानबूझकर मृत्यु या मृत्यु का प्रयास करना।

ऐसा कोई कार्य करना जो मृत्यु का कारण बन सकता है, जब तक कि वह मृत्यु या गंभीर चोट से बचाव के लिए न हो।

जानबूझकर चोट पहुंचाना, जब तक वह गंभीर नुकसान से बचने के लिए न हो।

किसी आपराधिक कार्य को प्रेरित करना (abetment)।

उदाहरण:

Z बेहोश हो जाता है, और उसे तुरंत ऑपरेशन की ज़रूरत है। A सर्जन होते हुए ऑपरेशन करता है। कोई अपराध नहीं।

A, एक बाघ को गोली मारता है जो Z पर हमला कर रहा है। गोली Z को लग सकती है, लेकिन उद्देश्य Z को बचाना है। कोई अपराध नहीं।

A एक बच्चे की आपात स्थिति में अभिभावक की अनुपस्थिति में ऑपरेशन करता है। कोई अपराध नहीं।

जली हुई इमारत से A बच्चे को नीचे गिराता है ताकि उसे बचाया जा सके। गिरने से मौत हो सकती है, लेकिन इरादा बच्चे की भलाई है। कोई अपराध नहीं।

व्याख्या:

“लाभ” का अर्थ केवल वित्तीय लाभ नहीं, बल्कि शारीरिक या स्वास्थ्य लाभ है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

डॉक्टरों, पुलिस और बचाव कर्मियों को आपात स्थिति में तुरंत कार्य करने की छूट देता है।

सद्भावपूर्वक कार्य करने वालों को कानूनी सुरक्षा मिलती है।

जहां सहमति लेना संभव नहीं, वहां भी मानवता के आधार पर मदद संभव हो पाती है।