धारा 28 यह स्पष्ट करती है कि कुछ स्थितियों में दी गई सहमति को वैध नहीं माना जाएगा, भले ही वह दिखाई दे रही हो। सहमति तब ही मान्य होती है जब वह स्वेच्छा से, समझदारी से, और बिना दबाव के दी गई हो।
मुख्य बिंदु:
डर या भ्रम में दी गई सहमति अमान्य है:
यदि कोई व्यक्ति डर या किसी तथ्य की गलतफहमी में सहमति देता है,
और सामने वाला व्यक्ति यह जानता है या उसे संदेह होना चाहिए कि सहमति डर या भ्रम के कारण दी गई है,
तो यह सहमति वैध नहीं मानी जाएगी।
मानसिक अयोग्यता या नशे में दी गई सहमति अमान्य है:
यदि व्यक्ति विक्षिप्त या नशे में है और वह अपनी सहमति के परिणाम को नहीं समझ पा रहा,
तो उसकी सहमति अवैध मानी जाएगी।
12 वर्ष से कम आयु के बच्चे की सहमति अमान्य है:
जब तक संदर्भ से विपरीत कुछ न कहा गया हो, 12 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की सहमति को मान्य नहीं माना जाएगा।
कैसे सुरक्षा प्रदान करता है:
डर, धोखे, या कमजोरी में दी गई सहमति से बचाव करता है।
बच्चों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
सुनिश्चित करता है कि कोई कार्य केवल वैध और सच्ची सहमति पर आधारित हो।
उदाहरण:
कोई व्यक्ति धमकी देकर किसी से सहमति लेता है – यह अवैध है।
कोई शराब पीकर समझ नहीं पा रहा और सहमति देता है – अवैध।
10 साल का बच्चा किसी खतरनाक खेल के लिए हाँ कहता है – अवैध।