धारा 29: कुछ अपराधों को सहमति से भी माफ नहीं किया जा सकता

धारा 29 यह स्पष्ट करती है कि कुछ ऐसे अपराध हैं जिन्हें केवल इस आधार पर वैध नहीं ठहराया जा सकता कि पीड़ित ने सहमति दी थी या उससे कोई नुकसान नहीं हुआ। ऐसे अपराध अपने आप में अपराध हैं, चाहे कोई नुकसान हो या न हो।

मुख्य बिंदु:

धारा 25, 26 और 27 में कुछ मामलों में सहमति द्वारा किए गए कार्यों को अपराध नहीं माना जाता,
लेकिन ये छूट ऐसे अपराधों पर लागू नहीं होती जो अपने आप में अपराध हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि उन्होंने कोई नुकसान पहुँचाया या नहीं।

यदि कोई व्यक्ति ऐसी सहमति से कार्य करता है जो कानूनन आपराधिक है, तो वह कार्य अभी भी अपराध माना जाएगा।

उदाहरण:

गर्भपात कराना, जब तक वह महिला की जान बचाने के लिए अच्छी नीयत से नहीं किया गया हो,
एक अपराध है चाहे महिला या अभिभावक की सहमति हो या न हो।

इसका मतलब है कि यह अपराध किसी नुकसान के कारण नहीं, बल्कि अपने आप में अपराध है।

कैसे यह सुरक्षा देता है:

यह कानून सुनिश्चित करता है कि सहमति के नाम पर गंभीर अपराधों को छूट न मिले।

यह सार्वजनिक नैतिकता और व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करता है।

कमजोर वर्गों (जैसे महिलाएं, बच्चे) की अनुचित सहमति से सुरक्षा करता है।