धारा 31 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति सच्ची नीयत से किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए कोई सूचना देता है, तो भले ही उससे उस व्यक्ति को कोई हानि हो, वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
मुख्य बिंदु:
कोई सूचना यदि सद्भावपूर्वक और लाभ के उद्देश्य से दी गई है,
तो भले ही उससे हानि हुई हो, उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
इरादा लाभ का होना चाहिए, न कि नुकसान पहुँचाने का।
उदाहरण:
एक सर्जन, अपने मरीज से कहता है कि उसके बचने की संभावना नहीं है।
मरीज को झटका लगता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।
क्योंकि सर्जन ने सच्ची नीयत से और ईमानदारी से अपनी राय दी, यह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही उसे परिणाम का अंदाज़ा हो।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है:
डॉक्टरों, वकीलों और सलाहकारों को सच्ची बातें कहने की छूट देती है।
सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति, यदि ईमानदारी से किसी के भले के लिए कुछ कहे, तो उसे अपराधी न ठहराया जाए।
सत्यनिष्ठा और नैतिक जिम्मेदारी को कानूनी समर्थन देती है।