धारा 37 यह स्पष्ट करती है कि कुछ स्थितियों में निजी रक्षा का अधिकार मान्य नहीं होता। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यह अधिकार दुरुपयोग न हो और व्यक्ति कानून को अपने हाथ में न ले जब वैकल्पिक कानूनी उपाय मौजूद हों।
मुख्य प्रावधान:
(1) निजी रक्षा का अधिकार नहीं होता:
(क) जब कोई लोक सेवक, ईमानदारी से अपने पद के रंग में, कोई ऐसा कार्य करता है
जो मृत्यु या गंभीर चोट का यथोचित भय उत्पन्न नहीं करता,
तो उस पर निजी रक्षा का अधिकार लागू नहीं होगा,
भले ही वह कार्य कानूनन पूरी तरह सही न हो।
(ख) जब कोई व्यक्ति लोक सेवक के निर्देश पर कोई ऐसा कार्य करता है
जो मृत्यु या गंभीर चोट का यथोचित भय उत्पन्न नहीं करता,
तो उस पर भी निजी रक्षा का अधिकार नहीं मिलेगा।
(ग) जब ऐसी स्थिति हो जिसमें व्यक्ति के पास सार्वजनिक प्राधिकरण से सुरक्षा प्राप्त करने का समय हो,
तो वह निजी रक्षा का सहारा नहीं ले सकता।
(2) रक्षा करते समय आवश्यकता से अधिक हानि नहीं पहुँचाई जा सकती:
- निजी रक्षा में उतनी ही हानि पहुँचाई जा सकती है जितनी आवश्यक हो।
- कार्यवाही आक्रमण की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए।
व्याख्याएं:
स्पष्टीकरण 1:
यदि आप नहीं जानते कि कार्य करने वाला व्यक्ति लोक सेवक है,
तो आपका निजी रक्षा का अधिकार समाप्त नहीं होता।
स्पष्टीकरण 2:
यदि कोई व्यक्ति लोक सेवक के आदेश पर कार्य कर रहा है,
और वह अपनी प्राधिकरण नहीं बताता या नहीं दिखाता,
तो आपको निजी रक्षा का अधिकार बना रहेगा।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करता है:
- यह सुनिश्चित करता है कि लोक सेवकों के वैध कार्यों के खिलाफ बल प्रयोग न हो।
- लोगों को कानूनी उपाय अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
- सार्वजनिक व्यवस्था और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
उदाहरण:
- यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी संपत्ति में प्रवेश करता है,
और वह आपको कोई गंभीर नुकसान नहीं पहुँचाता,
तो आप उस पर आक्रमण नहीं कर सकते। - यदि कोई व्यक्ति लोक सेवक के आदेश से कार्य करता है,
और आपको उससे कोई जीवन खतरा नहीं है,
तो आप निजी रक्षा का दावा नहीं कर सकते।