धारा 32 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति तत्काल मृत्यु के खतरे से डर कर मजबूरी में कोई ऐसा कार्य करता है जो सामान्य रूप से अपराध है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक वह हत्या या राज्य के विरुद्ध ऐसा अपराध न हो जिसे मृत्युदंड दिया जाता है।
मुख्य बिंदु:
मजबूरी में किया गया कार्य अपराध नहीं है, यदि:
कार्य उस समय के तत्काल मृत्यु के भय से किया गया हो,
व्यक्ति ने स्वेच्छा से उस स्थिति में खुद को नहीं डाला हो।
इस अपवाद का लाभ नहीं मिलेगा, यदि:
कार्य हत्या हो,
या राज्य के विरुद्ध कोई गंभीर अपराध हो जो मृत्युदंड से दंडनीय हो।
जान-बूझकर अपराधियों से जुड़ने पर यह छूट नहीं मिलेगी।
व्याख्याएं:
स्पष्टीकरण 1:
जो व्यक्ति स्वेच्छा से डाकुओं के गिरोह में शामिल होता है, उसे यह बहाना नहीं मिल सकता कि डर के कारण उसने अपराध किया।
उदाहरण: मारपीट की धमकी के कारण गिरोह में शामिल हुआ व्यक्ति — इस धारा का लाभ नहीं मिलेगा।
स्पष्टीकरण 2:
यदि कोई व्यक्ति डाकुओं द्वारा जबरन पकड़ लिया जाता है और उसे तत्काल मृत्यु की धमकी देकर किसी अपराध में शामिल किया जाता है,
जैसे: लोहार को ज़बरदस्ती दरवाज़ा तोड़ने को कहा जाए — तो उसे इस धारा का कानूनी संरक्षण मिलेगा।
यह कैसे सुरक्षा देता है:
ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा देता है जो अपनी जान बचाने के लिए मजबूरी में कार्य करते हैं।
यह मनोवैज्ञानिक दबाव की स्थिति को समझता है।
साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर अपराध (जैसे हत्या या देशद्रोह) को छूट न मिले।