धारा 36: मानसिक या भ्रांति में किए गए खतरनाक कार्यों के विरुद्ध रक्षा का अधिकार

धारा 36 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को करता है जो सामान्य रूप से अपराध होता,
लेकिन वह कार्य उस व्यक्ति की कम आयु, अपरिपक्वता, मानसिक अस्वस्थता, नशे की स्थिति या गलतफहमी के कारण अपराध नहीं माना जाता, तो भी उस कार्य के विरुद्ध निजी रक्षा का वैसा ही अधिकार होगा, जैसे कि वह कार्य वास्तव में अपराध होता।

मुख्य बिंदु:

  • यदि कोई व्यक्ति:
    • बच्चा है या अपरिपक्व है,
    • मानसिक रूप से विक्षिप्त है,
    • नशे में है,
    • या गलतफहमी में है,

और कोई ऐसा कार्य करता है जो अन्यथा अपराध होता, तो पीड़ित व्यक्ति को उस कार्य के खिलाफ वैसा ही रक्षा का अधिकार है, जैसा कि होता यदि वह व्यक्ति पूर्णतः जिम्मेदार होता।

उदाहरण:

  • उदाहरण (क):
    Z, एक विक्षिप्त व्यक्ति, A को मारने का प्रयास करता है।
    Z को अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा,
    लेकिन A को उसी प्रकार का निजी रक्षा का अधिकार मिलेगा,
    जैसे कि Z मानसिक रूप से स्वस्थ होता।
  • उदाहरण (ख):
    A रात्रि में एक घर में प्रवेश करता है, जहां उसका प्रवेश वैध है।
    Z, गलतफहमी में उसे चोर समझकर हमला करता है
    Z का यह कार्य अपराध नहीं है,
    फिर भी A को Z के खिलाफ निजी रक्षा का पूरा अधिकार है

यह कैसे सुरक्षा देता है:

  • यह सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिए असुरक्षित न रहे कि हमलावर कानूनी रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता
  • निजी रक्षा का अधिकार किसी भी आक्रामक कार्य के विरुद्ध पूरी तरह लागू होता है।
  • यह जीवन और संपत्ति की रक्षा के अधिकार को प्राथमिकता देता है।