धारा 39: जब आत्मरक्षा में केवल सीमित हानि वैध है, मृत्यु नहीं

धारा 39 यह निर्धारित करती है कि जब हमला धारा 38 में वर्णित गंभीर अपराधों में शामिल नहीं है,
तो हमलावर को मारना वैध नहीं होता, लेकिन व्यक्ति को मृत्यु के अलावा अन्य प्रकार की हानि पहुंचाने का अधिकार रहता है, बशर्ते कि यह धारा 37 की सीमाओं के अंतर्गत हो

मुख्य बिंदु:

  • यदि हमला:

    • जानलेवा नहीं है,
    • गंभीर चोट नहीं पहुंचा रहा,
    • या बलात्कार, अपहरण, तेजाब हमला जैसे गंभीर मामलों से संबंधित नहीं है, तो व्यक्ति हमलावर की हत्या नहीं कर सकता
  • लेकिन व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह हमलावर को कोई भी अन्य हानि पहुंचाकर अपने बचाव में कार्य कर सके।

  • यह अधिकार धारा 37 में उल्लिखित नियमों के अधीन होगा, जैसे:

    • आवश्यकता से अधिक बल का प्रयोग न हो।
    • जब सार्वजनिक सुरक्षा से सहायता मिल सकती हो, तब रक्षा का अधिकार नहीं है।
    • यदि कार्य लोक सेवक द्वारा सद्भावना में किया गया हो, तो उसका विरोध करने का अधिकार सीमित है।

उदाहरण:

  • कोई व्यक्ति बहस के दौरान आपको धक्का देता है, तो आप उसे मार नहीं सकते
  • लेकिन आप उसे धक्का देकर रोक सकते हैं, या उससे बचाव कर सकते हैं, जब तक कि आप जान से नहीं मारते

यह कैसे सुरक्षा देता है:

  • अनुचित बल प्रयोग से रोकता है
  • नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा करने का संतुलित तरीका देता है।
  • न्याय व्यवस्था में संतुलन बनाए रखता है — आत्मरक्षा के नाम पर हिंसा को नियंत्रित करता है।