धारा 50: अपराध के परिणाम नहीं, मंशा के अनुसार अभिप्रेरक को सजा

धारा 50 उन मामलों में लागू होती है जहां कोई व्यक्ति अपराध के लिए प्रेरित करता है, लेकिन जिसने कार्य किया है, वह उसे भिन्न उद्देश्य या ज्ञान के साथ करता है। इस स्थिति में, अभिप्रेरक को उस उद्देश्य के अनुसार दंडित किया जाएगा, जो उसका स्वयं का था, न कि कार्य करने वाले का।

मुख्य बिंदु:

  • यदि:
    • कोई व्यक्ति अपराध के लिए प्रेरित करता है, और
    • प्रेरित व्यक्ति कार्य करता है पर अलग मंशा या ज्ञान के साथ,
  • तो अभिप्रेरक को:
    • ऐसे दंडित किया जाएगा जैसे कार्य अभिप्रेरक की मंशा से किया गया हो,
    • और किसी अन्य मंशा को नहीं देखा जाएगा।

यह कैसे सुरक्षा देता है:

  • यह सुनिश्चित करता है कि अभिप्रेरक अपनी मंशा के अनुसार उत्तरदायी हो, न कि कार्यकर्ता के व्यवहार पर निर्भर हो।
  • इससे दंड से बचने के रास्ते बंद होते हैं जहां अपराध किसी दूसरे तरीके से हुआ हो।
  • यह मनोदशा (mens rea) पर आधारित न्याय को सुदृढ़ करता है।

उदाहरण:

  • A, B को चोरी के लिए उकसाता है।
    B यह समझते हुए वस्तु लेता है कि वह उसकी है।
    B दोषी नहीं पर A को उसकी मंशा के आधार पर चोरी के लिए सजा होगी
  • A, C को कहता है कि किसी को डरा दो (आक्रोशित करो)।
    C, उस व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचा देता है।
    A को आक्रोश के अभिप्रेरण के लिए सजा मिलेगी, न कि गंभीर चोट के लिए