भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 4 अपराधियों को दिए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दंडों को परिभाषित करती है। ये दंड अपराध की गंभीरता के आधार पर तय किए जाते हैं और न्याय व जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।
दंड के प्रकार:
-
मृत्युदंड (Death Penalty) – यह सबसे कठोर दंड है, जिसे गंभीर अपराधों, जैसे गंभीर हत्या और आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए दिया जाता है।
-
आजीवन कारावास (Imprisonment for Life) – अपराधी को जीवनभर कारावास की सजा दी जाती है, जिसमें परोल (Parole) की अनुमति हो सकती है या नहीं, यह अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है।
-
कैद (Imprisonment) – यह दो प्रकार की होती है:
-
कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) – इसमें अपराधी को कठोर श्रम (Hard Labor) करना पड़ता है, जैसे जेल में श्रम कार्य।
-
साधारण कारावास (Simple Imprisonment) – इसमें कठोर श्रम की आवश्यकता नहीं होती, यह कम गंभीर अपराधों के लिए दी जाती है।
-
संपत्ति की जब्ती (Forfeiture of Property) – यदि अपराधी ने अवैध तरीके से संपत्ति अर्जित की है या अपराध के लिए संपत्ति का उपयोग किया है, तो उसे सरकार द्वारा जब्त किया जा सकता है।
-
जुर्माना (Fine) – अपराधी को आर्थिक दंड दिया जाता है, जो स्वतंत्र दंड भी हो सकता है या कैद के साथ दिया जा सकता है।
-
सामुदायिक सेवा (Community Service) – अपराधी को समुदाय के लिए सेवा कार्य करने का आदेश दिया जाता है, जो आमतौर पर कम गंभीर अपराधों के लिए एक वैकल्पिक दंड के रूप में दिया जाता है।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करता है:
यह धारा न्यायिक प्रणाली में निष्पक्षता बनाए रखती है, ताकि अपराध की गंभीरता के आधार पर उचित दंड दिया जा सके।
यह सामुदायिक सेवा जैसी वैकल्पिक सजा को शामिल करती है, जिससे सुधारात्मक न्याय (Restorative Justice) को बढ़ावा मिलता है।
उदाहरण:
हत्या (Murder) → मृत्युदंड या आजीवन कारावास।
धोखाधड़ी (Fraud) → जुर्माना और कारावास।
छोटे स्तर की तोड़फोड़ (Minor Vandalism) → सामुदायिक सेवा।