धारा 22: मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के लिए कानूनी सुरक्षा

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 22 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक अस्वस्थता के कारण अपने कार्य की प्रकृति या उसकी गैर-कानूनीता को समझने में असमर्थ है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।

मुख्य प्रावधान:

मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के लिए कानूनी सुरक्षा

यदि कोई व्यक्ति अपने मानसिक असंतुलन के कारण अपने कार्यों को समझने में असमर्थ है, तो उसे दंडित नहीं किया जा सकता।

आरोपी को साबित करना होगा कि अपराध के समय वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था।

आपराधिक आशय (Mens Rea) आवश्यक है

किसी भी अपराध के लिए आशय और समझ का होना आवश्यक है।

यदि मानसिक बीमारी व्यक्ति को सही और गलत का ज्ञान नहीं होने देती, तो उसे अपराधी नहीं ठहराया जा सकता।

चिकित्सा और कानूनी जांच

अदालत मानसिक स्वास्थ्य जांच का आदेश दे सकती है ताकि यह साबित हो सके कि अपराध के समय आरोपी की मानसिक स्थिति क्या थी।

क्षणिक मानसिक विकार (Temporary Insanity) तब तक मान्य नहीं होगा जब तक यह प्रमाणित न हो जाए।

यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है?

मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को अनुचित दंड से बचाती है।

निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सा जांच की अनुमति देती है।

मानसिक रोगियों को जेल के बजाय पुनर्वास की सुविधा प्रदान करती है।

उदाहरण:

एक मानसिक रोगी को आवाजें सुनाई देती हैं जो उसे कोई अपराध करने का आदेश देती हैं → यदि यह साबित होता है कि उसे अपने कार्य की समझ नहीं थी, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।

एक व्यक्ति भ्रम में यह सोचकर किसी को मार देता है कि वह खुद पर हमला कर रहा है → अदालत पहले मानसिक जांच करेगी और फिर निर्णय लेगी।

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