भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 17 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो कानून द्वारा न्यायसंगत है, या यदि वह किसी तथ्यात्मक भूल के कारण लेकिन सद्भावना से यह मानता है कि वह कानून के तहत ऐसा करने के लिए अधिकृत है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा। हालांकि, यह प्रावधान केवल तथ्यात्मक भूल (Mistake of Fact) पर लागू होता है, न कि कानून की गलत व्याख्या (Mistake of Law) पर।
मुख्य प्रावधान:
कानून द्वारा न्यायसंगत कार्य अपराध नहीं होगा
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिसे कानून अनुमति देता है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा।
सद्भावनापूर्वक तथ्यात्मक भूल के कारण किया गया कार्य अपराध नहीं होगा
यदि कोई व्यक्ति तथ्यात्मक भूल के कारण, लेकिन ईमानदारी से यह मानता है कि वह कानून के अनुसार सही कार्य कर रहा है, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।
यह प्रावधान कानून की गलत व्याख्या (Mistake of Law) पर लागू नहीं होता।
उदाहरण:
उदाहरण: सद्भावना से गिरफ्तारी
A देखता है कि Z किसी व्यक्ति की हत्या कर रहा है।
A यह मानकर कि कानून उसे हत्यारों को पकड़ने की शक्ति देता है, Z को पकड़कर पुलिस के हवाले कर देता है।
बाद में पता चलता है कि Z ने आत्मरक्षा में हत्या की थी, यानी वह दोषी नहीं था।
फिर भी, A पर कोई अपराध नहीं लगेगा क्योंकि उसने सद्भावना से कार्रवाई की थी।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है?
उन व्यक्तियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है जो कानून का पालन करने की मंशा से कार्य करते हैं।
सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति सद्भावना से की गई गलती के कारण अपराधी न बने।
कानून की गलत व्याख्या को बचाव के रूप में अस्वीकार करती है, जिससे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जा सके।
अन्य उदाहरण:
यदि एक सुरक्षा गार्ड किसी व्यक्ति को चोरी करते हुए देखता है और उसे रोकता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह अपनी खुद की संपत्ति ले रहा था, तो सुरक्षा गार्ड अपराधी नहीं होगा यदि उसने सद्भावना से कार्य किया था।
यदि एक डॉक्टर किसी व्यक्ति को आपातकालीन चिकित्सा देता है, यह सोचकर कि वह घायल है, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह केवल बेहोश था, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि कार्य सद्भावना से किया गया था।