भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 23 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति जबरन या अनजाने में नशे की स्थिति में हो और इस कारण वह अपने कार्यों की प्रकृति या उनकी गैर-कानूनीता को समझने में असमर्थ हो, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
मुख्य प्रावधान:
जबरन नशे की स्थिति में कानूनी सुरक्षा
यदि किसी व्यक्ति को बिना उसकी जानकारी या उसकी इच्छा के खिलाफ नशीला पदार्थ दिया गया हो और इस कारण वह अपने कार्यों को समझने में असमर्थ हो, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।
यह उन मामलों पर लागू नहीं होता जहां व्यक्ति ने स्वयं नशा किया हो।
स्वेच्छा से नशा करने पर आपराधिक उत्तरदायित्व बना रहेगा
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से शराब या नशीले पदार्थों का सेवन करता है और अपराध करता है, तो उसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
केवल जबरन नशे की स्थिति ही एक वैध बचाव (defense) हो सकती है।
सबूत की जिम्मेदारी (Burden of Proof)
आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसे जबरन या अनजाने में नशा कराया गया था।
यदि यह साबित हो जाता है, तो वह अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करती है?
अनजाने में नशे में डाले गए व्यक्ति को अनुचित दंड से बचाती है।
न्याय सुनिश्चित करती है और स्वैच्छिक व अनैच्छिक नशे में अंतर करती है।
स्वेच्छा से नशा करने वालों को जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था करती है।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति के पेय में बिना उसकी जानकारी के नशीला पदार्थ मिला दिया जाता है और वह अनजाने में कोई अपराध कर बैठता है → उसे अपराधी नहीं माना जाएगा यदि वह अपने कार्यों को समझने में असमर्थ था।
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से शराब पीकर किसी से झगड़ा करता है और उसे घायल कर देता है → उसे अपराधी माना जाएगा क्योंकि स्वेच्छा से किया गया नशा बचाव का आधार नहीं हो सकता।